पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४५

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अतीत खण्ड चाणक्य-से दीतिज्ञ थे हम और निश्चन्छ निश्चयी, जिनके विपक्षी राजकुल की भी इतिश्री होगाई ।। है विष्णुपुरस्म ने घड़े में सिन्धु सचमुच भर दियाकहकर कहानी ही जड़ों को पूर्ण पण्डित कर दिया ! ।। ९४ ।। १-४ाणक्य के इरर नन्द-वंश के विनाश और चन्द्रगुप्त को राज्य दिलाने की कथा सुद्राराक्षस नाटक में सविस्तर वलि है । २-- अमरशकि नामा एक राजा था । बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनन्तश नाम के उनके तीन पुत्र थे । वे बड़े भूखे थे । उनको पढ़ाने के लिए असरशक्ति ने अनेक उपय किये पर वे न पड़ सके। इस पर विशुश नामक एक नीति-कुशल पण्डित ने उन्हें छः महीने में नीति कर देने का राजा को वचन दिया और मित्र-भैइ, मित्र-सम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश और अपरीक्षित थे पञ्चतन्त्र पढ़ा कर उन ममूर्तों को पूर्ण पण्डित ब दिया । पञ्चतन्त्र की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । इसकी उपयोगिता इससे सिद्ध है कि यूरोप की प्रायः तमाम भाषाओं में इसका अनुवाद हो गया है। इस के अनुवाद के विषय दत्त साहब लिखते हैं --- | इस ग्रन्थ का अनुवाद हौशेरवाँ के राज्य में (५३१५७२ } फ़ारसी में किया गया था । फ़ारसी अनुवाद की उल्था अरबी भाषा में हुभ और अस्थी से समीअन सेठ ३ सन् १९८० के लगभग इसका यूनानी भाषा में अनुवा? किया । फिर यूनानी से इसका उल्था लैटन भाषा में पोसिनस ने क्रिया है और इसका हिच भाषा में अनुवाद - जोल ने सन १२५० के लाभ किया । अरबी अनुवाद का एक उल्था स्पेन की भाषा में सन् १२५१ कै लगभग प्रकाशित हुआ । जर्मन भाषा मैं पहला अनुवाद १५ वीं शताब्दी में हुआ और उस समय में इस ग्रन्ध का अनुवाद यूरोप की सब भाषाओं में हो गया है और वह पिलपे ३ विडपे की कहानियों के नाम से प्रसिद्ध हैं।