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श्रीरामः

प्रस्तावना

प्रिय पाठकगण,

आज जन्माष्टमी है। आज का दिन भारत के लिए गौरव का दिन है। आज ही हम भारतवासियों के यहाँ तक कहने कई अवर मिला था कि-


जय जय स्वर्गागार-सस भारत-कारागार ।

पुरुष पुरातन का जहाँ हुआ नया अवतार ।।

जब तक संसार में भारतवर्ष का अस्तित्व रहेगा तब तक यह दिन उसकी महिमा के हर दिन सुमझा जायगा, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं । आज भगवान् ने अपने उन बचनों की सार्थकता दिखाई थी जिन्हें अपने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश करते हुए, प्रकट किया था -

"यदा यदा हि धर्मस्थ ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।"

भला मेरे लिए इससे शुभ और कौन-सा दिन होता कि मैं प्रस्तुत पुस्तक आप लोगों के सम्मुख उपस्थित करने के लिए पूर्ण करूं ।

यह बात मानी हुई है कि भारत की पूर्व और वर्तमान देशा में बड़। भारी अन्तर है अन्तर न कह कर इसे वैपरीत्य कहना चाहिए। शुकः वह समय था कि यह देश विधा, कला-कौशल्य और सभ्यता में संसार की शिरोमणि था और एक यह समय है किं इन्हीं बातों का इसमें शोचनीय अभाव हो गया है। जो आयर्यजाति कमी सारे संसार को शिक्षा