पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/५०

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४० ; भारत-भारती थे हार जात अन्य देशी गैद्यवर जिस रोग सेहम मस्म करते थे उसे क्स भस्म के हो यो से ।। थे दूर देशों के नृपति हमको बुलाकर मानते १, इतिहास साक्षी है, हमें सथ थे जगद्गुरु जानते है) १०२ }} (स्तु ) इमें तिब ( औद्यक ) के निहायत कदम सुसज्ञिक जिनको तसानीक अब तक मौजूद है, चरक और सुश्रुत हैं ! इनकी किताबों का तसा अरबी ज़बान में हुआ और ज़िनरालिब है कि अरवाले उनको तर्जुमा होते हैं। तहसील उलूम की तरफ मुतवज्ञह हु । अरबी ; मुसन्निक कुलानिया इझरार करते हैं कि हमने हिन्दोस्तान के तबोध से बेशक यदा उठाया है । इब्तिदा में अहल यूरप ने इस इल्म की तालीम उन्हीं ( हिन्दुओं ) से पाई । और जमाना हाल में भी दमा की बीमारी में हुक्कै मैं तूर पिलाना और कांच की फली से कीड़ों का इलाज करना उन्हीं से सीखा है। मौलाना है । ( श} अभी कुछ दिन हुए कि चरक का अँगरेज़ी में अनुवाद करने के उपलक्ष में एक बङ्गाली सजन की सरकार ने ६००) दिये थे । ॐ ऋदिक ।। १-जब आज कल भारतवर्ष के प्रत्येक भाग में स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिये विदेशियों की विवाह और निपुणता की आवश्यकता होती है तब २२०० वर्ष पहले सिकन्दर ने अपने यहाँ उन लोगों की चिकित्सा के लिए हिन्दू वैद्यों को रक्खी ए जिनकी चिकित्सा यूनानी नहीं कर सके थे । और ११०० वर्ष हुए कि बगदाद के हरशीद ने अपनें यह हिन्? वैद्य रक्खे थे जो अरबी अन्य मैं मन और सलह ६ सास से विख्यात हैं। अर, सी. को ।