पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/५४

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४४ भारत-भारती कला-कौशल अब लुप्त-सी जो हो गई रक्षित न रहने से यहाँ, सेच, तनिक कौशल्य की इतनी कलाएँ थी कहाँ ? लिपि-बद्ध चौंसठ नाम उनके अजि भी हैं दीखते, देश-चार विद्या-विज्ञ होकर हम जिन्हें थे सीखते ।।१०।। शिल्प हाँ, शिल्प-विद्या वृद्धि में तो थी यहाँ यों अति हुई--- होकर महाभारत इससे देश को दुर्गति हुई ! मय-कृत भवन में यदि सुयोधन थल न जल के जानत---- ते पाण्डवों के हास्य पर यो शत्रुता क्यों ठानता ?।।१०८।। प्रस्तर-विनिर्मित पुर यहाँ थे और दुर्ग बड़े बड़े ३, अब भी हमारे शिल्प गुण के चिन्ह कुछ कुछ हैं खड़े । . कदीमी कुतुबखाना जिसमें बहुत पुरानी पुरानी किताबें मौजूद थीं, जला दिया गया । (ख) सन् १९६१ ई० में वतियार खिलजी के सेनानायक मुहम्मद विनसम के हुक्म से उदन्तापुरी, विहार, नालन्दा, और बुद्धगया के पुस्तकालय जला दिये गये ।। (ग) अलाउद्दीन खिलजी ने अन्हिलवाड़ पटन का मशहूर पुस्तकालय अलवा डाला । और तबारीख क़ीरोजशाही से ज्ञात होता है कि फीरोज़ तुगलक ने कोहरे में बहुत-सी संस्कृत पुस्तकें जलवा डाली । | (घ) “और मुतखन से मालूम होता है कि औरङ्गजेब जहाँ जो कृतः पुस्तक पाता था, जलवा देता था । १-(क) ऋग्वेद में मं० ४ सू० ३० ऋ० २० आदि कई जगहों पर पत्थर के बने हुए सैकड़ों नगरों का वर्णन है और मं० ७ सू० ३,