पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
अतीत खण्ड


यदि झूठ कहने पर किसी का टिक रहा सस्व मी--
तो भो कई सत्य ही वह क्यों कि मरना है कभी ।
पञ्चायतों में, समय पर, दृष्टान्त ऐसे दीखते,
हैं अम्म का स । पाठ मानो गर्भ में हो सीखते?।१८४।।

हैं भाव सबके आननों पर ईश्वरीय प्रसाद के,
इस लोक में उनके हृदय अधार हैं अह्लाद के ।
सरते नहीं वह मौत वे जो फिर उन्हें मरना पड़े।
करते नहीं वह काम उनको नाम जो धरना पड़े ।।१८५।।

बस, विश्वपति में नित्य सबकी वृत्तियाँ हैं ला रही,
अन्तःकरण में ज्ञानमणि की ज्योतियाँ हैं जग रहीं।
क्रव्य' का ही ध्यान उनको है सदा व्यवहार में, वें “पपत्रभिवाम्भसा रहते सुखी संसार में 1।१८६।।

६ -( क ) मैंने किसी हिन्दू को झूठ बोलते नहीं सुना है
एरियन, यूनानी । ( ख ) मेगस्थनीज़ को बहुत दिनों तक पटने में रहने पर भी, एक भी ऐसा आदमी न सिला जो कभी झूठ बोल हो ।
( ग ) गाँव के रहने वाले स्वभावतः पञ्चायतों में दृढ़ता से सत्य को साथ देते हैं । मेरे सामने सैकड़ों ऐसे अभियोग हुए हैं जिनमें मनुष्य की सम्पत्ति, स्वाधीनता और प्राण तक उसके झूठ बोलने पर अवलम्बित रहे हैं, पर उसने झूठ बोलना स्वीकार नहीं किया ।

स्लीमैन ।