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भारत-भारती




शिवाजी


फिर भी दिखाई देश में जिसने महाराष्ट्रच्छटा--
दुदन्ति लमगीर का भी गर्न जिससे था घर ।
ऊस छत्रपति शिवराज का है नाम ही लेना अलम्,
है सिंह-परिचय के लिए बस 'सिंह' कह लेना अलम् ।। २४१ ।।
यवनजत्व कई अन्त
दौरात्म यवनों का यहाँ जब बढ़ गया अत्यन्त ही,
सॅमले न, उनका भी हुआ बस अन्त में फिर अन्त हो ।
था द्वार जो निज नाश का औरङ्गजेब बन्ना गया-
खुल कर पलासी में दिखाया दृश्य ही उसने नया ! ।। २४२ ।।
'ब्रिटिश राज्य
अन्यायियों का राज्य में क्या अचल रह सकता कभी ?
आखिर हुए अँगरेज़ शासक, राज्य है जिनका अभी ।।
सम्प्रति समुन्नति की सभी हैं प्राप्त सुविधाएँ यहाँ,
सव पथ खुले हैं, भय नहीं विचरी जहाँ चाहो वहाँ ।। २४३ ।।

अन्याय यचनों को हमें निज दोष से सहना पड़ा,
है किन्तु नारायण अहा ! न्याय तथा सकरुण बड़ा !
देते हुए भी कर्म-फल हम पर हुई उसकी दया,
भेजा प्रसिद्ध उदार जिसने ब्रिटिश राज्य यह नया ।। २४४ ।।