करनाटक की नबाबी का अन्त ५१६ करनाटक के नधाव मोहम्मदअली को बालाजाह भी कहते थे। मोहम्मदअली अंगरेजों का बहुत बड़ा दोस्त था। मोहम्मदअली और कम्पनी के बीच 'चिरस्थाई मित्रता' की सन्धि हो चुकी थी, जिसमें अंगरेजों ने मोहम्मदअली और उसके राज की रक्षा के लिए अपनी एक सेना करनाटक में रखने का जिम्मा लिया था और उस सेना के खर्च के लिए नवाब ने लाख पैगोदा यानी करीव ३० लाख रुपए सालाना अदा करने का वादा किया था। यह रकम माहवारी किस्तों में अदा की जाती थी। नवाब मोहम्मदअली हर महीने ठीक समय पर कम्पनी की रकम अदा करता रहा, यहाँ तक कि उसने अपने कुछ जिलों की मालगुजारी बतौर जमानत इस अदायगी के लिए अलग कर रक्खी थी। मोहम्मदअली के बाद उसका बेटा उमदतुल उमरा करनाटक का नवाब हुा । उमदतुल उमरा बाप की तरह हर महीने ठीक समय पर कम्पनी की रकम अदा करता रहा और सन्धि की शर्तों का ठीक ठीक पालन करता रहा । इसलिए करनाटक पर कब्जा करने का बहाना भी इतनी श्रासानी से न मिल सकता था। वेल्सली का दिमाग़ इन बातों में खूब चलता था । २४ अप्रैल सन् १७६६ को टीपू के साथ दोबारा युद्ध छेड़ते नवाब उमस्तुब समय, उसने नवाब उमदतुल उमरा को एक उमरा के नाम लम्बा पत्र लिखा । इस पत्र में उमदतुल उमरा चल्सबी का पर यह इलज़ाम लगाया गया कि आपने करनाटक के जिले, जिनकी आमदनी कम्पनी को देने के
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