पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१०९

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भारत में अंगरेज़ी राज

५२२ भारत में अंगरेजी राज भारत किसी भी शम्स के नाम न मैंने रहन कौरह की है और न मेरे इम्म में किसी दूसरे ने की है। इस तरह सजीदगी के साथ और साफ साफ शब्दों में यह एलान करने के बाद मैं उम्मीद करता हूँ कि मुझे और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।" अपने पिता की मरते समय की आज्ञा का हवाला देते हुए नवाब उमदतुल उमरा ने वेल्सली को लिख दिया कि पिछली सन्धि को तोड़कर अब मैं कोई नई सन्धि हरगिज़ मंजूर नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना "हर तरह के दोन और ईमान के खिलाफ़” है। इसके बाद अंगरेजों की हाल की विजय पर वेल्सली को बधाई देते हुए नवाब ने लिखा कि करनाटक का कुछ इलाका, जो हैदरअली ने छीनकर अपने राज में मिला लिया था और जिसे अब अंगरेजों ने टीपू से फ़तह कर लिया है, करनाटक को वापस मिल जाना चाहिये। यह वही इलाका था जो हैदरअली से सुलह करते समय अंगरेजों ही ने अपने मित्र करनाटक के नवाब से लेकर हैदरअली को दे दिया था। पत्र के अन्त में नवाब ने वेल्सली से प्रार्थना की कि चूंकि करनाटक की सबसीडीयरी सेना ने भी इस युद्ध में भाग लिया है, इस लिए इन्साफ़ यह है कि टीपू से जीते हुए मुल्क में से अपनी सेना के खर्च के औसत से करनाटक को भी कुछ हिस्सा मिलना चाहिए। निस्सन्देह नवाब उमदतुल उमरा का उत्तर और उसकी मांगे सब न्यायानुकूल थीं; किन्तु उनकी न्याय्यता को स्वीकार करना उस समय कम्पनी के लिए लाभदायक न था। वेल्सली समझ