पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१२९

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५४२
भारत में अंगरेज़ी राज

५४२ भारत में अंगरेजी राज जोसाया वेब ने ६ जुलाई सन् १७६E के पत्र में साफ लिखा है कि यदि ठीक समय पर मराठों की सेना मदद के लिए न पहुँचती तो अंगरेजों को उस युद्ध में सफलता न मिल सकती। किन्तु टीपू के साथ दूसरे युद्ध में टीपू की निर्दोषता और अंगरेजों का अन्याय दोनों इतने साफ थे कि इस बार वेल्सली और उसके साथियों को मराठों से सहायता की श्राशा न थी। इसके विपरीत दौलतराव सींधिया के पास एक विशाल और सन्नद्ध सेना थी। दौलतगव एक योग्य सेनापति अगरजा का था। वह अपनी सेना सहित इस समय पूना में दौलतराव से था और वेल्सली को डर था कि कही टीपू पर अंगरेजों के हमला करने के समय दौलतराव अपनी सेना सहित टीपू की मदद के लिए म पहुँच जावे । इसलिए टीपू पर दूसरी बार हमला करने के पूर्व मराठों की ओर वेल्सली की नीति के दो मुख्य अङ्ग थे। एक यह कि जिस तरह हो सके पेशवा बाजीराव को निजाम को तरह सबमीडीयरी सन्धि के जाल में फाँस कर पङ्गुल कर दिया जाय और दूसरा यह कि दोलतराव सींधिया और उसकी सेना को किसी न किसी तरह पूना से हटाकर उत्तर की ओर भेद दिया जाय। बिना पेशवा को सब्सीडीयरी सन्धि के जाल में फाँसे मराठों की सत्ता का नाश कर सकना सर्वथा असम्भव था और बिना दौलतराव के पूना से टले पेशवा को इस जाल में फाँस सकना अथवा टीपू पर निःशङ्क हो हमला कर सकना दोनों असम्भव मालूम होते थे। आशंका