पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४५

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भारत में अंगरेज़ी राज

५५८ भारत में अंगरेजी राज काबी में ठहरे रहे । xxx ब्रिटिश रेजिडेण्ट को यह भी मालूम हुआ कि बाजीराब को टीपू से १३ लाख रुपए मिले हैं, सोंधिया को भी इसमें सलाह थी, किन्तु नाना फडनवीस को उस समय इसका हाल मालूम नथाxxx"। गॉण्ट डफ के कहने का मतलब यह है कि पेशवा दरवार ने ऊपर से अंगरेजों की मदद करने का वादा कर लिया था और भीतर से वह टीपू से मिला हुआ था। सम्भव है कि नाना फडनवीस और दौलतराव सींधिया की नीति इस प्रकार की रही हो। कोई आश्चर्य नहीं कि मराठे अपने कूटनीति के गुरु अंगरेजों से इस समय तक ये सब चाले सीख गए हों। निस्सन्देह वेल्सली और पामर जैसों के साथ इस तरह की चाल चलना उस समय मगठों के लिए इतना अधिक लज्जाजनक न था, जितना निरपराध टीपू के विरुद्ध अंगरेजों को मदद देना। तिस पर भी हम ऊपर लिख चुके हैं कि मराठों के समस्त इतिहास में एक भी घटना ऐसी नहीं मिलती जब कि उन्होंने अंगरेजों के साथ अपना वचन भङ्ग किया हो। इसके अतिरिक्त ३ अप्रैल सन् १७६8 के जिस पत्र में वेल्मली ने पामर को लिखा कि पेशवा को सेना अब न बुलाई जायगी उसमें इन १३ लाख का कहीं ज़िक्र नहीं और न टोपू के साथ पेशवा की साजिश का कही जिक्र है। इसके अतिरिक्त वेल्सली को मराठों और टोपू की साजिश का पता सब से पहले रेजिडेण्ट पामर के उस पत्र से लगा, जो अप्रैल सन् १७६ को 'पूना से रवाना हुभ्रा और वेल्सली का वह पत्र, जिसमें उसने