पेशवा को फाँसने के प्रयत्न सबसीडीयरी सन्धि करने से फिर साफ़ इनकार कर दिया और वेल्सली पर जोर दिया कि जो इलाका अंगरेजों ने टीपू से विजय किया है, उसका एक भाग वेल्सली के वादे के अनुसार पेशवा दरबार को दिया जाय । इसके अलावा मुग़ल सम्राट को प्राक्षा के अनुसार पेशवा दरवार को सूरत के नवाब, हैदराबाद के निज़ाम श्रार मैसूर दरवार से सालाना चौथ मिला करती थी। जब तक यह इलाके अंगरेजों के असर में न आए थे, तब तक मराठों को उनसे यह चौथ बराबर मिलती रही। अब सूरत और मैसूर दोनों कम्पनी के हाथों में थे और निजाम कम्पनी का एक बन्दी था। इसलिए नाना ने पेशवा दरबार की ओर से इन तीनों राज्यों की चौथ वेल्सली से तलब की और आइन्दा के लिए इसका फैसला कराना चाहा। किन्तु नाना ने देख लिया कि बेल्सली इनमें से कोई एक बात भी पूरी करने को तैयार न था, वरन् इसके विपरीत वह अब और जोरों के साथ समस्त मराठा सत्ता को नष्ट करने के उपायों में लगा हुआ था। मजबूर होकर नाना ने फिर एक बार परशुराम भाऊ की नई सेना को केन्द्र बनाकर उसके साथ समस्त मराठा नरेशो और सरदारों को निज़ाम और अंगरेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया। किन्तु दुर्भाग्य से इस बार भी नाना को सफलता न मिल सकी। ठीक उस मौके पर, जब कि परशुराम मराठा आगीरदारों भाऊ की सेना निजाम और अंगरेजों दोनों से फैसला कर लेने के लिए तैयार हुई, अचानक
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