पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१५८

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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज -"श्राशा है कि हमें जल्दी ही मराठों से युद्ध करना पड़े, इसलिए उसके उपाय जान लेना उचित है xxxi" मराठों को तजरुबा था कि लगभग २५ साल पहले राघोबा के पूना से भागने का नतीजा कितना बुरा हुआ था, इसलिए इस बार दौलतराव सींधिया ने इस बात की पूरी सावधानी की कि बाजीराव अपने पिता का अनुसरण करने न पावे। वेल्सली करनल पामर की मार्फत बाजीराव पर 'सबसीडीयरी' सन्धि के लिए बराबर जोर देता रहा। होते ससाडायरी सन्धि होते बाजीराव किसी तरह राजी भी हो गया। के लिए पेशवा इतिहास लेखक मिल लिखता है कि बाजीराव ने स्थायी तौर पर कम्पनी की छै पैदल पलटन सेना और उसी के अनुसार तोपखाने का खर्च देना स्वीकार कर लिया। इतना ही वेल्सली चाहता था। इस खर्च के लिए बाजीराव ने उत्सर हिन्दोस्तान में २५ लाख रुपए सालाना का इलाका भी अलग कर देने का वादा किया। अब वेल्सली की माँग और बाजीराव के कहने में अन्तर केवल इतना रह गया कि वेल्सली चाहता था कि यह सेना पेशवा के इलाके में रहा करे और बाजीराव कहता था कि सेना सदा कम्पनी के इलाके में रक्खी जाय और केवल उस समय पेशवा के इलाके में पाए जब पेशवा को उसकी ज़रूरत हो। बाजीराव इस पर डट गया। जिस पत्र में पामर ने गवरनर जनरल को बाजीराव के इस प्रस्ताव को सूचना दी उसी में पामर ने लिखा-"मुझे डर है कि जब तक असन्दिग्ध नाश सामने खड़ा