५८० भारत में अंगरेजी राज खिलाकर और दोनों को एक दूसरे से लड़ाकर अपना काम निकालते रहे। गवरनर जनरल वेल्सली और रेजिडेण्ट क्लोज़ की इच्छा अब पूरी हो गई । “असन्दिग्ध नाश” अब पराजित पेशवा की आँखों के सामने दिखाई देने लगा। इतिहास लेखक मिल लिखता है कि इस समय एक बार बाजीराव ने इस बात को भी इच्छा प्रकट की कि बाजीराव और जसवन्तराव में सुलह हो जाय । मिल यह भी स्पष्ट लिखता है कि जसवन्तराव होलकर भी इस सुलह के लिए तैयार था, वह बाजीराव से मिलना चाहता था और चाहता था कि बाजीराव पेशवा बना रहे और पेशवा के साथ मेरा सम्बन्ध वैसा ही रहे जैसा सींधिया और मराठा मण्डल के अन्य सदस्यों का प्रॉण्ट डफ लिखता है कि बाजीराव के पूना से चले जाने के बाद भी जसवन्तराव ने फिर एक बार उसे पूना बुला लेने का प्रयत्न किया। किन्तु बाजीराव और जसवन्तराव में मेल कम्पनी के लिए हितकर न था। गवरनर जनरल वेल्सली के पत्रों बाजीराव का पूना में साफ लिखा है कि वेल्सली को उस समय छोड़ना " मुख्य चिन्ता किसी प्रकार बाजीराव को पूना से भगाकर अपने चङ्गुल में करने की थी । असहाय बाजीराव जसवन्तराव से हार खाते ही अंगरेज रेजिडेण्ट की सलाह से पूना से भागकर सिंहगढ़, सिंहगढ़ से रायगढ़, रायगढ़ से म्हाड़ और फिर स्वर्ण दुर्ग इत्यादि होता हुश्रा, कम्पनी के एक जहाज़ में बैठकर . Mill, book v. Chapter ii
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