पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१८३

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दूसरे मराठा युद्ध का प्रारम्भ

दुसरे मराठा युद्ध का प्रारम्भ ५६५ में हाल की सन्धि पर दस्तखत किए थे तो केवल घिर कर और विषश होकर । बसई पहुँचते हो वह अपनी असहाय स्थिति को अनुभव करने लगा था। पेशवा के अतिरिक मराठा मण्डल के चार मुख्य स्तम्भों में से गायकवाड़ पहले मराठा युद्ध के समय से ही मण्डल से टूट चुका था। होलकर कुल में फूट पड़ी हुई थी। अंगरेज कमी काशीराम को जसवन्तराब से और कमी जसवन्सराव को काशीराव से लड़ा रहे थे। केवल दो बलवान मराठा नरेश और बाकी थे, सींधिया और भोसले । बाजीराव ने अपनी असहाय स्थिति को अनुभव कर, वसई से बरार के राजा और दौलतराव सींधिया दोनों के पास अपने गुप्त दूत भेजे । उनसे यह प्रार्थना की कि आप मुझे फिर से पूना की मसनद पर बैठने में मदद दीजिये और साथ ही यह इच्छा प्रकट की कि किसी प्रकार इन दोनों की मदद से दौलतराव सींधिया, जसवन्तराव होलकर और बाजीराव तीनों के आपसी झगड़े तय हो जाय और इन तीनों के प्रयको से मराठा साम्राज्य में फिर से ऐक्य, बल और जीवन नज़र आने लगे। मराठा मण्डल के पाचशे मुख्य सदस्यों में प्रारम्भ से यह . परस्परप्रतिज्ञाएँ हो चुकी थीं कि आपत्ति के समय " वे सदा एक दूसरे की मदद करेंगे और बिना परिस्थिति पाँचों में सलाह हुए किसी अन्य शक्ति के साथ किसी तरह की सन्धि या समझौता न करेंगे। विशेषकर दौलतराव सीधिया और पेशवा बाजीराव इन दो में अत्यन्त घनिष्ट सम्बन्ध रह चुका था। बाजीराव के लिए यह आवश्यक था कि यह सींधिया मराठा मया