पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२२१

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भारत में अंगरेज़ी राज

६३२ भारत में अंगरेजी राज था। जसवन्तराव होलकर और सींधिया के बीच उस समय मेल की कोशिशें हो रही थीं। जसवन्तराव पूना से उत्तर की ओर अपने राज्य में गया हुआ था। उसके पास एक जबरदस्त, सन्नद्ध और विजयी सेना थी। इसलिए अंगरेजों को इस समय सबसे अधिक चिन्ता इस बात की थी कि कहीं जसवन्तराव होलकर सीधिया और भोसले के साथ न मिल जाय । इसीलिए जसवन्नराव के पूना से लौटते हुए अंगरेज़ों ने उसे पेशवा और निज़ाम दोनों के इलाकों में लूट मार जसवन्तराव को करने का खुला मौका दिया। हम ऊपर दिखा सींधिया से फोड़ने के प्रयत्न चुके हैं कि पूना की लूट के समय करनल क्लोज़ जसवन्तराव के साथ था और औरंगाबाद की लूट में अंगरेजों का साफ़ हाथ था। इस बीच जब कि अंगरेज़ सोंधिया और भोसले दोनों को बराबर तंग करते रहे, जसवन्तराव को वे बराबर खुश रखने के प्रयत्न करते रहे । अंगरेजों की हो मदद और उकसाने से पूना से लौटने के बाद जसवन्तराव तुकाजी होलकर के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी काशीराव होलकर को इन्दौर की गद्दी से उतार कर स्वयं होलकर राज्य का स्वामी बन गया। मार्किस वेल्सली के अनेक पत्र अत्यन्त खुशामद से भरे हुए उन दिनों महाराजा जसवन्तराव होलकर के पास पहुँचे । १६ जुलाई सन् १८०३ को जनरल वेल्सली ने कादिर नवाज़ खा नामक अपने एक गुप्त दूत को एक पत्र देकर जसवन्तराव के पास भेजा और लिखा कि कादिर नवाज़ खाँ 'मेरा पक्का विश्वस्त श्रादमी है' और