पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२९९

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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज था महाराजा जयपुर की सहायता मिले न वह ग्वालियर पर हमला करने का साहस कर सकता था और न उस हालत में जयपुर पर हमला करने का ही उसे साहस हो सकता था। जनरल लेक ने या उसके साथियों ने हिन्दोस्तान में कोई लड़ाई अपने सैन्यबल और वीरता के सहारे नहीं जीती और न अभी तक अंगरेज़ों की साजिशों का जादू ही अम्बाजी पर चल पाया था। किन्तु मालूम होता है कि महाराजा जयपुर लेक की चालों में श्रा गया। १४ नवम्बर को एक “अत्यन्त गुप्त और प्राइवेट" पत्र में लेक ने गवरनर जनरल को लिखा- "लसवारी को विजय से जयपुर के राजा और उसके समस्त बदमाश और दगाबाज़ सलाहकारों को अकल आ गई है, अब वे लोग मेरे कैम्प की मोर पा रहे हैं।" ____ इन सुन्दर (?) शब्दों में जनरल लेक ने भारतीय देशघातकों की कद्र की। फिर भी जो कुछ हुआ हो, इसके बाद भी लेक को ग्वालियर पर हमला करने की हिम्मत न हो सकी। उधर दक्खिन में जनरल वेल्सली अपने भाई गवरनर जनरल को साफ लिख चुका था कि दौलतराव सींधिया दानापामसान्ध को और अधिक हानि पहुँचाने अथवा उसको की उत्सुकता सवार सेना से लड़ने की मुझमें अब हिम्मत

  • "It (the victory at Laswari) has brought the Raja of Jeypore and all

his wicked and tratorous advisers to reason, they are now upon their march to my camp."-" Private and most secret " letter from Lake to Governor- General 14th November, 1843.