पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३०४

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७१३
जसवन्तराव होलकर

जसवन्तराव होलकर ७१३ "जब तक हम होखकर पर हमला न करेंगे और पेशवा के सब इलाके पेशवा से न छीन लेंगे, तब तक हम इन देशों से मराठों को कतई बाहर निकाल देने में सफल न होंगे, चाहे सीपिया हमें अपने अधिकार दे भी क्यों न दे।"* यह पत्र उस समय का है, जब कि अंगरेज़ जसवन्तराव की ओर ऊपर से गहरी मित्रता दिखा रहे थे। मार्किस वेल्सली के पत्रों से स्पष्ट है कि वह भो होलकर का नाश करने के लिए शुरू से उत्सुक था। किन्तु जब तक सींधिया के साथ सन्धि की लिखा पढ़ी न हो जाय, तब तक होलकर को छेड़ना ठीक न था। जसवन्तराव होलकर ने भी इस झूठी श्राशा में कि सोंधिया लेक और वेल्सली के साथ युद्ध समाप्त होने के बाद अंगरेज़ मेरे में पत्र व्यवहार साथ अपने वादों को पूरा करेंगे, उनके साथ मित्रता कायम रक्खो और सींधिया और भोसले की आपत्तियों में उन दोनों को किसी तरह की सहायता न दी। सींधिया और भोसले के साथ युद्ध समाप्त होते ही जसवन्तराव ने जनरल वेल्सलो के पत्रों की नकले जनरल लेक के पास भेजी और वेल्सली के वादों की पूर्ति चाही। लेक ने जसवन्तराव होलकर का unless we make war upon Holkar, and deprive the Peshwa of his territornes, we shall not succeed in driving the Marhatas entirely from these countries, although Scindhia should cede his rights "Camp before Gauregarh, 12th December, 1803, General Wellesley's letter to Mayor Shawe.