४६० भारत में अंगरेजी राज से सामन्त सरदार, मुल्प मुख्य अकसर और प्रजा के अन्य लोग अपने नरेश के खिलाफ बगावत करके कम्पनी और उसके साथियों को पनाह में भाने के लिए तैयार हैं। सुलतान को दबाजी और ज्यादती की वजह से जिस युद्ध में हमें फिर से बदना पड़ा है उसमें सुलतान के भादमियों की पदमनी और उनकी बगावत से जहाँ तक हो सके, बाम उठाना हमारे लिए जाया और मुनासिव है।" 'दगाबाज़ी और ज़्यादती' वास्तव में किस ओर थी, यह इतिहास के पन्ने पन्ने से जाहिर है । रहा विपक्षी एक बाजारता के 'श्रादमियों की बदमनी और उनकी बगावत - में जहाँ तक हो सके लाभ उठाना नहीं बल्कि उनमें बदभमनी और बगावत पैदा करके उन्हें अपनी ओर फोड़ना-सो यह काम सदा ही कम्पनी के लिए 'जायज़ और मुनासिब' समझा गया। इस काम के लिए यानी पहले से जा जा कर टीपू के आदमियों से मिलने और उन्हें फोड़ने के लिए वेल्सली ने अपने भाई करमल वेल्सली, करनल क्लोज़, करमल एगन्यु, कप्तान मैलकम और कप्तान मैकॉले, पाँच प्रादमियों का ." I have reason to believe that many of tbo inbutanes, mnepal officers, and other subjects of Tipoo Sultan, are inclhned to throw off the authonty of that prance, and to place themselves under the protection Company and of our allhes The war in which we are agen involved by the treachery and violence of the Sultan, renders at both just and expedient that we should avail ourselves, as much as possible, ot the discontent and disaffection of his people "-Marquess Wellesiey's letter to General Haris Wellesley's Daspatches, p 442
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