सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७९३
भरतपुर का माहासरा

भरतपुर का माहासरा ७१३ करने का प्रयत्न न करें । मुझे डर है कि हमने इस जगह को और इस शत्रु को इतना सुच्छ समझ लिया था कि हमने दोनों को अजेय बना दिया।" जनरल लेक ने बार बार राजा रणजीतसिंह से सुलह की प्रार्थना की। रणजीतसिंह ने बार बार लेक की शर्तों को अस्वीकार किया। पत्र व्यवहार बराबर जारी रहा। अन्त में जब राजा रणजीतसिंह ने देखा कि अमीर खाँ ने होलकर के साथ विश्वासघात किया, और दौलतराव सींधिया भी अपने नमकहराम सलाहकारों की चालों में आकर जसवन्तराव होलकर की मदद के लिए भरतपुर न पहुँच सका, तो विवश होकर उसने जनरल लेक को सुलह की प्रार्थना की ओर ध्यान देना शुरू किया। फिर भी लेक के ज़ोर देने पर भी राजा राणजीतसिंह ने जसवन्तराव होलकर को अंगरेज़ों के हवाले करना किसी तरह स्वीकार न किया। अंगरेजों ने मजबूर होकर भरतपुर का मोहासरा बन्द कर दिया। राजा ने सब से पहले मार्च सन् १८०५ के अन्त में होलकर और उसकी शेष सेना को खुले सब्बलगढ़ की ओर रवाना कर दिया। उसके बाद अप्रैल के शुरू में अंगरेज़ो और भरतपुर के राजा में सन्धि हो गई । सींधिया की सवार सेना भरतपुर पहुँची, किन्तु इस सुलह हो जाने के बाद डीग का किला और भरतपुर का वह समस्त इलाका, जिस पर ." I feel too strong a desire for the early termination of the war, even on any terms Irequest Your Lordship not to attempt to renew the siege without full and ample means for its prosecution , not to attempt any assault while the least doubt exists of success I fear that we have despised the place and enemy so much as to render both formidable."- Marquess wellesley to General Lake 9th March 1805