८०६ भारत में अंगरेजी राज (१) जेनकिन्स की रिहाई का सवाल ही न उठाया जाय। ( २ ) ग्वालियर और गोहद फ़ौरन सींधिया को वापस दे दिए जायँ। (३) धौलपुर, बारी और राजकरी के ज़िले सीधिया के हवाले कर दिए जायँ और पिछली सन्धि से अब तक की वहाँ की माल- गुजारी का सींधिया को हिसाब दे दिया जाय । (४) तीन लाख रुपए सालाना जयपुर का ख्रिराज सींधिया को वापस कर दिया जाय इत्यादि । केवल इस शर्त पर कि सींधिया होलकर से अलग हो जाय और गोहद के राना के खर्च के लिये ढाई या तीन लाख रुपए वार्षिक का प्रबन्ध कर दे। इसी पत्र में कॉर्नवालिस ने लेक को लिखा कि मैं जसवन्तराव होलकर के सारे इलाके जसवन्तगव को वापस देकर उसके साथ भी सुलह करने को तैयार हूँ। निस्सन्देह ये मब शर्ते स्वीकार करना अंगरेजों के लिए काफी . दबना था, किन्तु लॉर्ड कॉर्नवालिस के पास उस कॉर्नवालिस की समय और कोई चारा न था। फिर भी मराठी मृत्यु के साथ सुलह करने का यश कॉर्नवालिस को प्राप्त न हो सका। अभी पत्र-व्यवहार हो ही रहा था कि तीन महीने से कम गवरनर जनरल रहने के बाद अक्तूबर सन् १८०५ में अचानक गाजीपुर में लॉर्ड कॉर्नवालिस की मृत्यु हो गई । गाजीपुर में ही भारतवासियों के चन्दे से उसके मृत शरीर के ऊपर एक सुन्दर मकबरा बनाया गया।
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