पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८११
दूसरे मराठा युद्ध का अन्त

दूसरे मराठा युद्ध का अन्त ८११ सींधिया ने भी साथ छोड़ दिया था। फिर भी वीर जसवन्तराव का साहस न टूटा। मालूम होता है कि वह इसी दूसरे मराठा युद्ध के शुरू को अपनी गलतियों का पूर्ण प्रायश्चित्त करने का संकल्प कर चुका था। इस समय भी उसने अंगरेजों के साथ सुलह करने से इनकार कर दिया। वह अभी तक अन्य भारतीय या एशियाई नरेशों को अपनी ओर मिलाकर अंगरेजों को भारत से निकालने के स्वप्न देख रहा था। सितम्बर सन् १८०५ के शुरू में अपने रहे सहे वफ़ादार अनुयाइयों सहित अजमेर से निकल कर लाहौर के महाराजा रणजीतसिंह और अन्य सिक्ख राजाओं से मदद की श्राशा में, या अधिक आगे बढ़ कर काबुल के बादशाह से सहायता प्राप्त करने की आशा में, जसवन्तराव होलकर पञ्जाब की ओर बढ़ा। ___ जनरल लेक अपनी सेना सहित होलकर का पीछा करने के लिए निकला। किन्तु इस समय भी होलकर का विरोध करने का जनरल लेक को एकाएक साहस न होता था । कलकत्ते की अंगरेज़ कौन्सिल बराबर जनरल लेक पर ज़ोर दे रही थी कि जिस तरह और जितनी जल्दी हो सके, होलकर के साथ सुलह कर ली जाय । ब्यास नदी के ऊपर लेक और होलकर की सेनाएँ एक दूसरे के करीब आ गई अमोर खाँ, जो इस सारे अरसे में जसवन्तराव के साथ था, अपने जीवन चरित्र में लिखता है :- . "जनरल लेक ने देख लिया कि यदि रणजीतसिंह और पटियाले के राजा और इस देश के दूसरे सरदार महाराजा होलकर के साथ मिल जायेंगे तो एक नई आग भड़क उठेगी, जिसे बुझाना बड़ा मुशकिल होगा । इसलिए