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भारत में अंगरेज़ी राज

५४ भारत में अंगरेज़ी राज A में ज़मानशाह के सौतेले भाई महमूद ने उसकी आँखें निकाल कर उसे कैद कर दिया और स्वयं बादशाह बन बैठा । तीसरे भाई शाहशुजा ने महमूद को तख्त से उतार कर ज़मानशाह को कैद से रिहा किया और खुद तख पर बैठ गया। यह शाहशुजा सर्वथा अंगरेज़ों का आदमी था। निम्सन्देह मैलकम और उसके साथियों ने ईरान से बैठे बैठे बड़ी होशियारी के साथ अपना सारा काम पूरा कर लिया। इतिहास-लेखक मिल एक स्थान पर लिखता है कि उस ज़माने के अंगरेज़ अपने मतलब के लिए काबुल के मूठी अफवाहों हो बादशाह के हमले की झूठी अफ़वाह प्रायः उड़ा - " दिया करते थे। यही चाल उन्होंने एक बार दौलतराव सींधिया के साथ चली थी । भावी घटनाओं ने साबित कर दिया कि मैलकम को भेजने का वास्तविक उद्देश न बाबा खाँ से दोस्ती करना था और न जमानशाह को रोकना था, वरन् अफगानिस्तान के अन्दर खानेजङ्गियां पैदा करके अफ़ग़ा- निस्तान के ऊपर श्रागामी अंगरेज़ी हमले के लिए मैदान तैयार करना था। मार्किस वेल्सली के समय में फ्रान्स के ईरान द्वारा भारत पर हमला करने की सम्भावना प्रायः बिलकुल न थी। इसलिए गवरनर जनरल का अपने पत्र में इस ओर सङ्केत करना भी केवल एक राजनैतिक चाल थी। ईगन के अतिरिक्त मार्किस वेल्सली ने अपने विशेष दूत सिन्ध