प्रथम लॉर्ड मिण्टो ८७५ छावनियों में भेजा गया। मामला शीघ्र शान्त हो गया, एक यूरोपियन लेखक इस बगावत के सम्बन्ध में लिखता है- ___यह बग़ावत एक बड़े नाजुक समय में हुई । सतलज के इस पार के लोग, और मराठे और बुन्देलखण्ड वाले अभी तक काबू में न आए थे। यदि रणजीतसिंह उस समय सतलज पार कर मराठों के देश और बुन्देख- खण्ड से होता हुआ बङ्गाल पहुँच जाता, तो निस्सन्देह अंगरेजों की सत्ता फिर से उन्हीं सीमाओं के अन्दर परिमित हो जाती, जो लॉर्ड क्लाइव के समय में थीं; किन्तु मद्रास के बागियों ने शीघ्र इस ख़तरे को अनुभव कर लिया और वे खुद अपनी अपनी जगह लौट गए x x x और गवरमेण्ट इतनी निर्बल थी कि उसने एक भी अफसर को गोली से न उड़ाया।" निस्सन्देह गैर ईसाई कालं सिपाहियों की समय समय की बग़ावतों को शान्त करने के लिए अंगरेजों ने इस देश में जिस तरह के उपायों का उपयोग किया है, गोरे सिपाहियों की इस बगावत को शान्त करने में उस तरह के उपायों का उपयोग नहीं किया गया । न एक भी गोरे अफसर को फांसी दी गई और न किसी को तोप के मह से उड़ाया गया। This happened at a critical period If Ranjit Singh had then crossed the Sutlaj, the Marathas and Bundelkhand, which were not then reduced to submisson, and marched to Bengal, the British power would no doubt have re-entered into the limits conquered by Lord Clive,-but the revolted of Madras soon perceived the danger and returned of themselves to their duty .. and the Government had the weakness not to shoota. Single officer "--M Victor Jacquemont's Letters from India, rol 1, pp 323,24
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