पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४७४

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भारत में अंगरेज़ी राज

७८ . भारत में अंगरेजी राज गया।"* और आगे चल कर लैकी लिखता है कि “१७ वीं शताब्दो के अन्त में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दोस्तान की सस्ती और नफीस कैलीको, मलमल और छीटें इङ्गलिस्तान में पाती थीं और इतनी पसन्द की जाती थीं कि इंगलिस्तान के ऊनी और रेशमी कपड़ा बनाने वालों को उनसे बहुत बड़ा खतरा हो गया।" ___ उस समय तक के भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विषय में प्रसिद्ध अंगरेज़ इतिहासज्ञ डॉक्टर रॉबर्टसन सन १८१७ में लिखता है:- ___ "हर युग में सोना और चाँदी और विशेष कर चाँदी दूसरे मुल्कों से हिन्दोस्तान में भेजी जाती थी जिससे हिन्दोस्तान को बहुत बड़ा लाभ था । पृथ्वी का कोई और भाग ऐसा नहीं है जहाँ के लोग अपने जीवन को पावश्यकताओं या अपने ऐश पाराम की चीज़ों के लिए दूसरे देशों पर इतना कम निर्भर हो । ईश्वर ने भारतवासियों को अत्यन्त उपयुक्त जलवायु दिया है. उनकी भूमि अत्यन्त उपजाऊ है, और इस पर वहाँ के लोग अत्यन्त दर है;x x x इन सब बातों के कारण हिन्दोस्तानी अपनी समस्त इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं । नतीजा यह है कि बाहरी संसार की उनके साथ सदा एक ही डङ्ग से सिखारत होती रही है, और उनके यहाँ के अनुत, • "A passion for coloured East Indian cahcoes, which speedily spread through all classes of the community."-Lecky's History of England in the Eighteenth Century', vol 11, p 158 + "At the end of the seventeenth century great quantities of cheap and graceful Indian Colicoes, muslins, and chintzes were imported into England, and they found such favour that the woolen and silk manufacturers were seriously alarmed "-Ibid, vol. vi, pp 255-256