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भारत में अंगरेज़ी राज

800 भारत में अंगरेजी राज भेजी गई और हिन्दोस्तान की सरकार ने सन् १८१५ में उसी को कानून का रूप दे दिया, हस्यादि ।" ग्लासगो चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने अपने बयान में लिखा- "ऊनी कपड़ों, धातुओं और जहाज़ी सामान के उपर हिन्दोस्तान में बिलकुल महसूल नहीं लिया जाता, जिससे निस्सन्देह इंगलिस्तान के इन चीज़ों के व्यापार को बहुत बड़ी सुविधा प्राप्त हुई है।" दूसरा उपाय जो भारतीय उद्योग धन्धों को नष्ट करने का किया गया वह इंगलिस्तान के अन्दर भारत के भारतीय माल पर बने हुए माल पर ज़बरदस्त महसूल लगा देना निषेधकारी था, ताकि भारत का माल इंगलिस्तान में महसूल इंगलिस्तान के बने हुए माल से सस्ता न बिक सके। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ लैकी लिखता है कि भारत के बने हुए कपड़े उन दिनों इतने सुन्दर, सस्ते और मजबूत होते थे कि १८ वीं शताब्दी के शुरू ही में इंगलिस्तान के कपड़ा बुनने वालों को हिन्दो- स्तान के कपड़ों के मुकाबले में अपने रोज़गार के नष्ट हो जाने का डर हो गया। उसी समय से इंगलिस्तान की पार्लिमेण्ट ने कानून बना कर कई तरह के भारतीय कपड़ों का इंगलिस्तान प्राना बन्द कर दिया और दूसरे कई तरह के कपड़ों पर भारी महसूल लगा दिए । यह उपाय भो काफ़ी साबित न हुए तब लैकी के बयान के अनुसार सन् १७६६ में इंगलिस्तान के अन्दर यदि कोई