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भारत में अंगरेज़ी राज

६०२ भारत में अंगरेज़ी गज को भेज दें। इतनी कड़ाई के होते हुए भी दूसरी श्रेणी के कपड़े ७२ फीसदी महसूल देने के पश्चात् उस प्रकार के अंगरेज़ी कपड़ों के मुकाबले में इङ्गलिस्तान के बाजारों के अन्दर ६० फीसदी तक कम दाम में मिलते थे। अर्थात् श्राज से करीब सौ वर्ष पहलं तक भारत में जो कपड़ा हाथ के सूत से और हाथ के करधों पर तैयार होकर १००) रुपए से कम में मिल सकता था, उतना सुन्दर और उतना मज़बूत कपड़ा इङ्गलिस्तान के पुतलीघर वाल भाप और मशीनों की मदद मे ४५० रुपए में भी तैयार करके न बेच सकते थे। हिन्दोस्तान से उन दिनों तरह तरह के सूती, ऊनी और रेशमी कपड़ों के अतिरिक्त हाथ की छड़ियाँ जिन पर तीन हजार सोने चाँदी की मूठे और तरह तरह का काम फ्रीसदी तक होता था, चीनी मिट्टी के बरतन, चमड़े और महसूल लकड़ी को चीजें, शराब, अरक, वारनिश का काम, नारियल का तेल, सींग, रस्सियाँ, चाय, अरारुट चटाइयाँ, चीनी, साबुन, कागज़ इत्यादि अनेक तरह का माल इङ्गलिस्तान जाता था । सन् १८१३ से १८३२ तक इङ्गलिस्तान की आवश्यकता- नुसार बराबर इङ्गलिस्तान के अन्दर इन चीजों पर महसूल घटता बढ़ता रहा । कई तरह के भारतीय कपड़ों, खास कर रेशमी समालो और रेशम की बनी हुई चीजों का विकना इङ्गलिस्तान में सन् १८२६ तक कानूनन् बन्द रहा । बहुत सी चीजों पर १०० फीसदी से भी ज़्यादा महसूल लिया जाता था। कई पर ६०० फीसदी तक