पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५

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पन्द्रवाँ अध्याय
टीपू सुलतान

सन् १७९२ की सन्धि के बाद—टीपू को मिटाने का संकल्प—टीपू पर झूठे इलज़ाम—टीपू के साथ धोखा—टीपू और वेल्सली में पत्र व्यवहार—युद्ध का एलान—विश्वासघात का जाल—टीपू पर चारों ओर से हमला—विश्वासघातक पूनिया—नमक हराम कमरुद्दीन—श्रीरङ्गपट्टन की लड़ाई—सय्यद ग़फ्फ़ार की वफ़ादारी—टीपू का वीरोचित अन्त—श्रीरंगपट्टन में कम्पनी के अत्याचार—टीपू के महल की लूट—मैसूर के नए बालक महाराजा के साथ सन्धि—टीपू की मौत पर ख़ुशियाँ—टीपू के चरित्र को कलंकित करने की कोशिशें—दो मुख्य इलज़ाम—टीपू की धार्मिकता—टीपू के दो एलान—हिन्दुओं के साथ टीपू का व्यवहार—जगद्‌गुरु शंकराचार्य के नाम टीपू के पत्र—मन्दिरों को जागीरें—टीपू की प्रजा पालकता—टीपू का एक शिला लेख—टीपू का विद्या प्रेम—व्यक्तिगत चरित्र—टीपू की असफलता के कारण—उसके चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता। पृष्ठ ४४९-४९४