नेपाल युद्ध ६३५ रक्षा करना और सिकिम के राजा को नैपाल के विरुद्ध अपनी ओर फोड़ना था। इस प्रकार अंगरेज़ सरकार ने तीस हज़ार सेना मय तोपों आदि के नैपाल पर हमला करने के लिए तैयार कर ली। इस सेना के मुकाबले के लिए नेपाल दरबार मुश्किल से १२ हजार सेना जमा कर सका । नेपाली अंगरेजों के मुकाबले में न धन खर्च कर सकते थे, न उनके पास अच्छे हथियार थे, और न वे कूटनीति में ही अंगरेजों की टक्कर के थे। सबसे पहले मेजर जनरल जिलेस्पी की सेना ने नैपाल की . सरहद के अन्दर प्रवेश किया। नाहन और वीर बलभद्रसिह देहरादन दोनों उस समय नेपाल के राज में थे। नाहन का राजा अमरसिंह थापा नेपाल दरबार का एक प्रसिद्ध सेनापति था और अमरसिंह थापा का भतीजा सेनापति बलभद्रसिंह केवल ६०० श्रादमियों सहित देहरादून की रक्षा के लिये नियुक्त था। अंगरेजी सेना के श्राने की खबर पाते ही बलभद्रसिंह ने बड़ी शीघ्रता के साथ देहरादून से करीब साढ़े तीन मील दूर नालापानी की सब से ऊँची पहाड़ी के ऊपर कलङ्गा नाम का एक छोटा सा दुर्ग खड़ा कर लिया । बलभद्रसिंह के श्रादमी अभी बड़े बड़े कुदरती पत्थरों और जाली लकड़ियों की सहायता से इस दुर्ग की चहार दीवारी तैयार कर ही रहे थे कि जिलेस्पी की सेना का अधिकांश भाग करनल मॉबी के अधीन २४ अक्तबर को देहरादून पहुँच गया। लिखा है कि 'खोरी के ज़मींदारों' और 'बहादुरसिंह के बेटे राना
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