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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५६५

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तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध ६६६ विस्तृत भूमि है । इसके बाद दक्विन-पच्छिम में पूना से लेकर उत्तर-पूर्व में कानपुर तक नज़र डाले ; मुख्य मुख्य देशी दरबारों की जगहों को ध्यान में रक्खे, और फिर उन विशाल सेनाओं की कल्पना करे जो तीनों बड़े बड़े प्रान्तों से चुन कर ली गई थी, और जो हिन्दोस्तान और दक्खिन दोनों को घेरते हुए और पिण्डारी जत्थों और स्वाधीन रियासतों दोनों को एक साथ अपने जाल में लपेटते हुए, इस विस्तृत भू-भाग के ऊपर फैलसी जा रही थीं। वास्तव में उस समय के (अंगरेज़ राजनैतिक) शिकारी इस भारत के राजों, महाराजों का एक ज़बरदस्त श्राखेट समझते थे; और यदि वे राजा महाराजा भी इस मामले को लगभग इसी दृष्टि से देखते थे और पह समझते थे कि बहुत दिनों तक माराम करने के बाद, फिरङ्गी लोग अब फिर एक जबरदस्त युद्ध के लिए तैयारी कर रहे हैं और अपनी समस्त विशाल सैनिक शक्तियों को लगा कर देशी रियासतों को पृथ्वी पर से मिटा देने का एक व्यापक प्रयत्न करने वाले हैं, तो हमें उनके ऐसा समझने पर पाश्चर्य नहीं हो सकता। 'मराठे जाग उठे, वे पहले से बेचैन थे ही। अब वे सशक हो गए।xxx "मुझे मालूम होता है कि पेशवा और बरार के राजा का यही हाल हुमा। हमारी सेनाओं के जमा होने और बढ़ने से वे चौंक गए। उन्हें विश्वास न हुआ कि ये जबरदस्त सैनिक तैयारियों केवल पियारियों को वश में करने के लिए की जा रही हैं। उन्होंने सोचा कि जिस युद्ध को स्वयं गवरनर जनरख एक विशाल सेना लेकर अपने नेतृत्व में चला रहा है, उसका शुरू में और जाहिरा उमेश चाहे कुछ भी हो, किन्तु अन्त में वह युद्ध