पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५७०

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९७४
भारत में अंगरेज़ी राज

सीलि कसाथ ९७४ भारत में अंगरेजी राज से जयपुर को लुटवाना अंगरेज़ों ही की कूटनीति का काम था। फिर भी किसी मराठा नरेश ने कभी भी किसी राजपूत घराने के स्वतन्त्र अस्तित्व को नहीं मिटाया और न किसी से उसकी गद्दी छोनी। जिस समय का ज़िक्र हम कर रहे हैं उस समय जयपुर इत्यादि गजपूत रियासते महाराजा सींधिया की सामन्त थ थीं। मरे मराठा युद्ध के बाद अंगरेजों और नई सम्धि सींधिया के बीच जो सन्धि हुई थी उसमें कम्पनी ने सीधिया और राजपूतों के इस सम्बन्ध को स्वीकार किया था; और सन्धि में यह एक साफ़ शर्त कर दी गई थी कि कम्पनी सरकार राजपूत रियासतों के साथ न किसी तरह का पत्र व्यवहार करेगी और न उनके साथ कोई पृथक सम्बन्ध कायम करेगी। करमल टॉड की नियुक्ति इस मन्धि का स्पष्ट उल्लङ्घन थी। इतना ही नहीं, वरन् करनल टॉड ने गजपूतों और मराठों के कभी कभी के पुराने झगड़ों को बढ़ाकर और अन्य झूठे सचे उपायों से मराठों की ओर से राजपूतों के चित्त में घृणा उत्पन्न कर दी; यहाँ तक कि करनल टॉड हो की कूटनीति की सहायता से लॉर्ड हेस्टिग्स ने महाराजा सींधिया के साथ की उस दस वर्ष पूर्व की सन्धि के विरुद्ध राजपून नरेशों के साथ सींधिया से ऊपर ही ऊपर पृथक सन्धियाँ कर ली और महाराजा सींधिया से उनका सम्बन्ध तोड़ कर उन्हें कम्पनी के साथ सबसीडीयरी सन्धि के जाल में फैसा लिया।