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भारत में अंगरेज़ी राज

६७८ भारत में अंगरेज़ी राज की मसनद पर बैठाया और बाजीराव में चाहे कोई भी और दोष क्यों न रहा हो, किन्तु अंगरेज़ों की ओर उसका व्यवहार सदा सच्चा रहा । बाजीराव कायर था, राजनीति की शतरञ्ज का वह अत्यन्त कच्चा खिलाड़ी था। अपनी अदूरदर्शिता के कारण कई बार विदेशियों के हाथों में खल कर वह मराठा सत्ता के नाश का सबब बना। किन्तु अपने विदेशी मित्रों का वह सदा वफ़ादार रहा। इसके अतिरिक्त उसकी सच्चाई, उसकी धर्मनिष्ठा और एक सामान्य शासक की हैसियत में उसकी योग्यता को अनेक अंगरेज़ लेखकों और यात्रियों ने प्रशंसा की है । यहाँ तक कि रेज़िडेण्ट करनल बैरीक्लोज़ तक ने बाजीगव की सच्चाई को स्वीकार किया है, और बम्बई के विद्वान चीफ़ जस्टिस सर जेम्स मैकिन्टॉश ने तो दक्खिन के इस ब्राह्मण शासक को इंगलिस्तान के तीसरे जॉर्ज और फ्रान्स के नैपोलियन दोनों से कहीं अधिक योग्य शासक बताया है। मैकिन्टॉश इन तीनों नरेशों से भली भाँति परिचित था। जिस समय का ज़िक्र हम कर रहे हैं उस समय पेशवा बाजीराव क्रियात्मक दृष्टि से अंगरेज़ों के हाथों में कैदी था। फिर भी अंगरेज़ उसकी इस स्थिति से मन्तुष्ट न थे। दूसरे मराठा युद्ध के बाद से ही उसकी बेड़ियों को और अधिक जकड़ने, उसे भड़काने और उसे बरबाद करने के प्रयत्न बराबर जारी थे।

  • Origin of the Pandarnes, etc, - bv an Officer in the Service of Honor-

able East India Company, 1818, Allahabad reprint + Poona Gasetteer