पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९८६
भारत में अंगरेज़ी राज

६६ भारत में अंगरंजी राज एलफिन्सटन की नज़रों में वह अधिकाधिक खटकने लगा। एलफिन्सटन ने हुकुम दिया कि खुरशेदजी को दक्खिन से निकाल कर गुजरात भेज दिया जाय । निर्बल बाजीराव में इनकार करने का साहस न था। खुरशेदजी पूना छोड़ने के लिए तैयार हो गया। किन्तु ठोक जिस समय कि खुग्शेदजी जमशेदजी मोदी पूना से रवाना होने वाला था, एक दिन अचानक उमं जहर देकर मार डाला गया। अंगरेज़ों का कथन है कि खुरशेदजी ने या तो खुद ज़हर खा लिया या पेशवा ने उसे ज़हर दिलवा दिया। ये दोनों बातें इतनी लघर है कि किमी को उन पर एक क्षण के लिए भो विश्वास नहीं हो सकता। खुरशेदजी उस समय एलफिन्मटन के मार्ग में सब से बड़ा कांटा था। उसका गुजरात में रहना अंगरेजों और गङ्गाधर को योजनाओं के लिए उतना ही खतरनाक हो सकता था जितना पूना मे। अधिक सम्भावना यही है कि एलफिन्सटन ने अपने किसी गुप्तचर मं खरशेदजी की हत्या करवा डालो। पेशवा बाजीराव ने खुरशेदजी को संवानों के लिए उसे गुज- रात में कुछ जागीर प्रदान की थी, जो आज नक खुरशेदजी जम- शेदजो मोदी के वंशधरों के पास है। ऊपर आ चुका है कि गङ्गाधर शास्त्रो के पूना जाने के दो . उद्देश थे । एक पेशवा और गायकवाड़ के पिछले गङ्गाधर शास्त्री की हो हिसाब को साफ़ करना और दूसरा अहमदाबाद के इलाके का पट्टा फ़तहसिंह गायकवाड़ के नाम हत्या