तीसरा मराठा युद्ध ERE अपने प्रयत्नों में कुछ दरजे तक सफलता प्राप्त हुई। धन या वैभव के लोभ में श्राकर या सम्भव है किसी अधिक उच्च भाव से प्रेरित होकर गङ्गाधर शास्त्री अब त्रयम्बक जी, बाजीराव और फतहसिंह गायकवाड़ तीनों में मेल कराने के पक्ष में होगया। श्रह-. मदाबाद का पट्टा गायकवाड़ को नहीं मिल सका । फिर भी गङ्गाधर शास्त्री ने अब पिछले हिसाब का निबटाग पेशवा की इच्छा के अनुसार और ईमानदारी के माथ करना चाहा । बड़ोदा गजेटियर मे लिखा है- "शास्त्री ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि उन्तालीस लाख रुपए मय सूद के गायकवार को पेशवा के देने निकलते हैं, और पेशवा की अन्य समस्त माँगों के बदले मे, जिनमें कि पेशवा के अनुसार एक करोड़ रुपए बकाया और चालीस लाग्ब रुपए खिराज के थे, शास्त्री ने यह तजवीज़ की कि गायकवाड़ सात लाख रुपए सालाना का इलाका पेशवा को दे दे । साथ ही शास्त्री ने x x x रेजिडेण्ट एलफिन्सटन से यह प्रार्थना की कि आप बडोदा दरबार को राजी करने में मेरी मदद कीजिये।" गङ्गाधर ने हिसाब की एक नकल और अपनी तजवीज़ गायक- बाड़ दरबार को भेज दी । फ़तहसिंह गायकवाड़ अंगरेज़ों के कहने में था। कई महीने तक बड़ोदा से कोई जवाब न आया । अन्त में फतहसिंह ने अंगरेजों के कहने में श्राकर अपने ही प्रतिनिधि गङ्गाधर शास्त्री की तजवीज़ को स्वीकार करने से इनकार कर दिया । पेशवा और गङ्गाधर शास्त्री को निराशा हुई । किन्तु गङ्गाधर • Ibid, p 221.
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