पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६३३

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१०३२
भारत में अंगरेज़ी राज

१०३२ भारत में अंगरेजीराज सफलता के साथ लड़े जा सकें।" इनमें से कुछ किलो के भारतीय संरक्षकों ने बड़ी वीरता और श्रात्मोत्सर्ग के साथ श्राखोर दम तक अपने किलों की रक्षा की। फिर भी एक दूसरे के पश्चात् राजदीर और त्रयम्बक, तालनेर और असीरगढ़ जैसे करोब तीस मज़बूत किले देखते देखते विदेशियों के हाथों में प्रागए। कहीं पर, जैसे राजदीर में, किलेदार और उसके सिपाहियों में झगड़ा हो गया और सिपाहियों ने अपने ही किले को आग लगा दी। कहीं पर, जैसे त्रयम्बक में, राजा अप्पा साहब के भाग जाने का समाचार सुन कर सेना के हाथ पाँव ढोले हो गए। कहीं पर, जैसे तालनेर में, किलेदार ने अंगरेज़ों की अधीनता स्वीकार कर ली, फिर भी अंगरेज़ी सेना ने शरणागत शत्रुओं का कल्ले श्राम कर डाला । अनेक जगह किलेदारों को धन का लोभ देकर उनसे अपने स्वामो और राज के विरुद्ध विश्वासघात कराया गया । प्रायः सब जगह नागपुर के नए दुध मुंहे राजा की ओर से कम्पनी के पक्ष में एलान बँटवाए गए । सब से अधिक देर असीरगढ़ के किले ने ली। इस किले के अन्दर अधिकाँश अरब सेना थी, जिसने एक वर्ष से ऊपर तक अर्थात् ७ अप्रैल सन् १८१६ तक शत्रु को अधीनता स्वीकार म की । अन्त में असीरगढ़ के पतन के साथ साथ वह समस्त इलाका कम्पनी के अधीन हो गया जो हाल की सन्धि से उसे प्राप्त हुआ था। • "She (Nature) seems to have marked them out as a theatre, on which the battles of freedom and independence might be successfully fought," -Journal of the Stages of the Madras Army, by Lieut Lake, p 107