२०३४ भारत में अंगरेज़ी गज जब उसे फिर से गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त न हो सकी तो उन्होंने एलान किया कि यदि अप्पा साहब लौट आए तो उसे एक लाख रुपए सालाना की पेनशन पर कम्पनी के इलाके के अन्दर किसी भी स्थान पर रहने दिया जायगा । किन्तु अप्पा माहब ने यह स्वीकार न किया। उमने अब छत्तीसगढ़ के लोगों, राजा कीरतसिंह और भोपाल के कुछ सरदारों इत्यादि को अपनी ओर करने की कोशिश की। अन्त में करनल ऐडम्स के अधीन अंगरेज़ी सेना अप्पा साहब को गिरफ्तार करने के लिए कई श्रोर से महादेव पहाड़ पर पहुँची । अप्पा साहब अपने विश्वस्त अनुचर प्रसिद्ध चीतू पिण्डारी और कुछ सवारों सहित असीरगढ़ के किले में दाखिल हुश्रा । अंगरेजी सेना ने उसका पीछा किया। असीरगढ़ के किले के ठीक नीचे दोनों ओर की सेनाओं में लड़ाई हुई। सम्भव है कि अप्पा साहब उस समय गिरफ्तार कर लिया जाता, किन्तु ठोक समय पर किले के अन्दर सं जसवन्तराव लार की सेना ने निकल कर अंगरेज़ी सेना से अप्पा साहब को बचा लिया। इसके कुछ समय बाद ही वफ़ादार चीतू पिण्डारी किसी चीते का शिकार होगया । असीरगढ़ के किले के अन्दर से अप्पा साहब और अंगरेज़ों में फिर कुछ पत्र व्यवहार हुा । अंगरेज़ों ने उसे अधीनता स्वीकार कर लेने के लिए कहा, किन्तु अप्पा साहब ने फिर इनकार कर दिया। इसके बाद अप्पा साहब फ़कीर के वेश में केवल एक अनुचर सहित बरहानपुर की ओर निकल गया। बरहानपुर उस समय
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