पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६३८

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१०३५
तीसरा मराठा युद्ध

अप्पा साहब का तीसरा मराठा युद्ध १०३५ सींधिया की रियासत में था और सींधिया अंगरेजों के प्रभाव में श्रा चुका था। अप्पा साहब को बरहानपुर छोड़ का कर लाहौर की गह लेनी पड़ी। कुछ दिनों वह अन्त एक साधारण व्यक्ति के समान लाहौर में रणजीत सिंह का मेहमान रहा। उसके बाद अप्पा साहब को लाहौर भी छोड़ना पड़ा । लाहौर संचल कर वह हिमालय पहाड़ के अन्दर कई बरस तक मराडी को रियासत में वहाँ के राजा का मेहमान रहा । इसके पश्चात् वह फिर मध्य भारत की ओर लौटा । इस बार उसने जोधपुर रियासत के अन्दर महामन्दिर नामक सुप्रसिद्ध मन्दिर में श्राश्रय लिया । अंगरेज़ों ने जोधपुर के गजा पर जोर दिया कि अप्पा साहब को कम्पनी के हवाले कर दो। किन्तु जोधपुर के राजा मानसिंह ने मन्दिर के मान और एशियाई श्रातिथ्य धर्म की मर्यादा को उल्लंघन करने से इनकार कर दिया। अन्त में जोधपुर के महामन्दिर में ही राजा मानसिंह के आतिथ्य में नागपुर के निर्वासित राजा अप्पाजी भोसले ने अपनी ऐहिक जीवन-यात्रा का अन्त किया। केवल एक और स्वाधीन मगठा गज बाकी रह गया था। दस वर्ष पूर्व अंगरेजों को जसवन्तराव होलकर होलकर के साथ के साथ जो सन्धि करनी पड़ी थी वह किसी उस तरह भी अंगरेजों की कीर्ति को बढ़ाने वाली न थो। किन्तु इस बीच वीर जसवन्तराव होलकर पागल होकर मर चुका था, और होलकर गज के मुख्य कर्ता धर्ता अमीर खां के साथ