सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मृल कनाड़ी पत्र, नागरी लिपि में श्रीमत् परमहंसादि यथोक्त विरुदाकितरादन्था अंगेरी श्री सच्चिदानन्द भारती स्वामी गलवरिये । टिप्पू सुलतान बादशाह रवरु सलाम । ____ता र बरसि कलुहिमिद पत्रिकेहन्द सकल अभिप्रायऊ तिलियलायितु । ता उ जगद्गुरु गलु, सर्वलोकक्कु क्षेम भागबेकु, जनरु स्वस्थदल्लि, इरब- किम्बदागि नपस्सु माडुत्तले इट्टीरी । सरकारद क्षेमवु उत्तरोत्तर अभिवर्धमान श्रागुवन्ते, त्रिकाल तपस्सु माडवल्लियु ईश्वरप्रार्थने माडुत्ता बरुउद. तम्मन्था दोडवरु, यावदेश दल्ली इधारयो, प्रादेशिक्क मले बिले सकलवु, अागि सुभिक्षवागि हरतक्कदाई रन्द, परस्थल दल्लि, बहल दिवस ता उ यातक्के इरबेकु, होदकलमवन्नु क्षिप्रदल्लि अनुकूलपडिसिकोण्डु, स्थलक्के सागिबरुवन्ते माडिसूवदु । तारीक २६ माहे राजीमाल महर मन १२२० महम्मद पराधावी सम्वत सरद माघ बहुल १४ लु खत्त सुबाऊ मुनशी हज़र ।