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१०५८
भारत में अंगरेज़ी राज

१०५८ भारत में अंगरेजी राज जिनमें अधिकांश हिन्दोस्तानी थे, भारत से बरमियों के नाश के लिए भेजी गई। अनकरीब इसी समय एक और अत्यन्त भीषण घटना हुई, जिस बयान करने के लिए हमें बरमा युद्ध के ब्रिटिश भारतीय प्रसंग से हटना पड़ेगा। साम्राज्य के ऊपर के उद्धरण में सर चार्ल्स मेटकॉफ़ ने प्राधार-स्तम्भ स्वीकार किया है कि अंगरेजो के भारतीय साम्राज्य का मुख्य आधार अंगरेजों की हिन्दोस्तानी सेनाएँ हैं। अधिकतर हिन्दोस्तानी सिपाहियों हो के रक्त से ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य की नींव रक्खी गई, और उन्हों की वीरता और वफ़ादारी के कारण यह साम्राज्य कायम है। वास्तव में हिन्दोस्तानी सिपाहियों के गुण ही उनके देश की स्वाधीनता के लिए घातक सिद्ध हुए । सुप्रसिद्ध इतिहास लेखक लैकी लिखता है- "जो जाति प्राज्ञा मानने वाली, विनीत और राजभक्त होती है, वह अपने इन्हीं गुणों के कारण दूसरों के स्वेच्छाचारी शासन का शिकार बन जाती है।" अंगरेज़ इतिहास लेखकों और अंगरेज शासकों ने हिन्दोस्तानी सिपाहियों के इन गुणों की सदा मुक्त कण्ठ से _ प्रशंसा की है। फिर भी हिन्दोस्तानी सिपाहियों सिपाहियों के साथ अनुचित व्यवहार के साथ उनके अंगरंज मालिकों ने प्रायः कमी भी उचित व्यवहार नहीं किया । बरमा युद्ध के • " A people who are submmsvr gentle, and loyal, fall by reason of these very qualities under a desrotic (Innerument "-Iecky