पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६७७

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१०७३
लॉर्ड ऐमहस्र्ट

लॉर्ड ऐमहर्ट १०७३ शाही कुरसी पर बैठा । ऐमहर्ट का रुख सम्राट की बाई ओर था। रेज़िडेण्ट और सब अफ़सर और समस्त बड़े बड़े दरवारी खड़े हुए थे।" सम्राट ने अपनी सारी शिकायतें और कम्पनी के वादे लॉर्ड ऐमहर्ट के सामने बयान किए, किन्तु लॉर्ड ऐमहर्ट ने बजाय इन शिकायतों और वादों की ओर ध्यान देने के सम्राट के "श्रादाब व अलकाब" को भी बदल दिया और अपने इस उद्धत व्यवहार से असहाय सम्राट को दरबारियों की नजरों में नीचा दिखाया। ऐमहर्ट ने सम्राट पर प्रकट कर दिया कि कम्पनी के समस्त वादे केवल राजनैतिक चालें थीं। इसके बाद सम्राट के साथ पत्र व्यवहार करने में भी अंगरेजों ने पुराने श्रादाब व अलकाब का बरतना बन्द कर दिया। सम्राट अकबरशाह का चित्त इस घटना से इतना दुस्खी हुश्रा कि बाद में इन्हीं सारी बातों की शिकायत के लिए लॉर्ड लेक का दस्तखती “इकरारनामा" देकर अकबरशाह ने सुप्रसिद्ध राजा राममोहन राय को इङ्गलिस्तान भेजा, किन्तु यहाँ कौन सुनता था। पीटर श्राबर नामक एक अंगरेज़ लिखता है कि इस मुलाकात से लॉर्ड ऐमहर्ट ने- दिल्ली में गहरा स से की इस कल्पना का अन्त कर दिया कि शोक अंगरेज सरकार दिल्ली के सम्राट की प्रजा हैं। अत्यन्त . Punjab Government Records, Delht Residency and Agency, 1800-1857, vol 1, p 338.