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भारत में अंगरेज़ी राज

२११६ भारत में अंगरेज़ी राज के विषय में कही जा सकती है। इस कानून का उद्देश हो भारत- चासियों को निर्धन बनाना, उन्हें चरित्र भ्रष्ट करना, उनमें बेई- मानी और मुफ़दमेबाजी की आदत डालना और उन्हें सर्वथा बरबाद करना था। मार्किल ऑफ़ हेस्टिंग्स ने सन् १८१६ में डाइरेक्टरों के नाम एक पत्र लिखा था जिसमें उसने विस्तार के साथ यह दिखलाया कि किस प्रकार सन् १७८० से लेकर उस समय तक नई अंगरेज़ी अदालतों ने बङ्गाल को जायदादों को बग्बाद कर दिया, देश के सुखी और समृद्ध किसानों को निर्धनता और दरिद्रता की नीचतम स्थिति तक पहुँचा दिया, उनके सदाचार का सत्यानाश कर दिया, पुरानी सामाजिक संस्थाओं को तोड़ फोड़ डाला और भारतवालियों की परवशता को और भी बढ़ा दिया। लॉर्ड मैकॉले के पोनल कोड ने इस स्थिति को सुधारने के स्थान पर उसे और भी अधिक खराब कर दिया। इस कानून के अनेक दोषों को दर्शाना यहाँ पर हमारे लिए अप्रासङ्गिक होगा। अनेक विद्वान अंगरेजों की स्पष्ट सम्मतियाँ इस विषय में देखी जा सकती हैं। मुजरिमों को रिहाई का गस्ता दिखाना और मिदोषों को फंसाना, सरकार के हाथ मजबूत करना और प्रजा को असहाय बना देना इस अनोखे कानून के मुख्य लक्षण हैं। संसार के किसी सभ्य देश में इतनी जबरदस्त सजाएँ नहीं दी जाती जितनो भारत में। वास्तव में लॉर्ड मैकॉले भारतवासियों को इङ्गलिस्तान की सम्पत्ति समझता था। उसने एक स्थान पर लिखा है-"हम जानते हैं कि भारतवर्ष को स्वतन्त्र राज नहीं दिया जा