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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/८२

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सोलवाँ अध्याय अवध और फर्रुखाबाद अवध की धन सम्पन्न भूमि उन दिनों 'हिन्दोस्तान का बाग' कहलाती थी। अवध का लोभ विदेशी कम्पनी हिन्दोस्तान का प्रतिनिधियों के लिए कोई मामूली लोभ न वाग था। अवध के नवाब के साथ कम्पनी की सब से पहलो सन्धि बक्सर की लड़ाई के बाद सन् १७६५ में हो चुकी थी। उस समय से ही कम्पनो का एक अंगरेज़ रेजिडेण्ट अवध के नवाब के दरबार में रहा करता था। भारत के समस्त राजदरवारों में उस समय अंगरेज रेजिडेण्ट हिन्दोस्तानी ढंग से रहते थे, हिन्दोस्तानी उन दिनों के पोशाक पहनते थे और अपने यहाँ हिन्दोस्तानी अंगरेज रेजिडेट मुन्शी नौकर रखकर उनसे हिन्दोस्तानो भाषाएँ और हिन्दोस्तानी रहन सहन के तरीके सीखते थे।