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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१२२

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश रामानुज और अन्य आचार्यो के उपदेशों में एक ईश्वरवाद पर ज़ोर, भक्ति का उन्माद, प्रपत्ति, गुरुभक्ति, जातिभेद का ढीलापन, इत्यादि अनेक बाते इसलाम के साथ मिलती हुई हैं। इनमें से अनेक विद्वानों के ग्रन्थों में अनेक मुसलमान सूफियों के अन्धों के साथ कहीं कहीं अाश्चर्य- जनक समानता दिखाई देती है। लिङ्गायत सम्प्रदाय की स्थापना बारवी सदी के करीब हुई। वासव, चन्न बासव और एकान्त रमय्या तीनों श्राचार्य इस सम्प्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं । लिङ्गायत सम्प्रदाय एक शैव सम्प्रदाय है। लिझायत लोग एक ईश्वर (परशिव) को मानते हैं। अपने गुरु 'अल्लमा प्रभु को वे ईश्वर का अवतार मानते हैं। मुसलमानों के 'चार पीरों' के समान वे भी चार आराध्य मानते हैं। दीक्षा के नियम बिलकुल वैसे ही हैं जैसे सूफियों में। लिङ्गायत लोग जातिभेद को नहीं मानते । पैरिया ठीक उसी तरह उनकी सम्प्रदाय में लिया जा सकता है जिस तरह ब्राह्मण । दोनों में कोई अन्तर नही माना जाता । विवाह में कन्या को रजामन्दी आवश्यक समझी जाती है। बाल विवाह की मनाही है। तलाक की इजाजत है। विधवाओं को पुनर्विवाह की इजाजत है । मुर्दे बजाय फूंकने के दफ़न किए जाते हैं । श्राद्ध इत्यादि नहीं किए जाते । लिङ्गायत लोग आवागमन के सिद्धान्त को नही मानते । सब लिङ्गधारी एक दूसरे के साथ खा पी सकते हैं, विवाह सम्बन्ध कर सकते हैं। ये लोग अपने को 'नङ्गम' या 'वीर शैव' भी कहते हैं। बेलगाम, बीजापुर और धारवाड जिलों में ३५ फीसदी और मैसूर और कोल्हापुर रियासतों में १० नीसदी आबादी लिङ्गायतों की है । निस्सन्देह लिङ्गायतों के सिद्धान्तों में अनेक बाते ऐसी हैं जो इसलाम