मानव धर्म समय से फिर एक बार उत्तर ने धार्मिक विचारों के क्षेत्र में शेष भारत का नेतृत्व हाथ में लिया और कबीर ही के विचार अनेक सन्तों और महात्माओं द्वारा एक बार उत्तर से दक्खिन तक समस्त भारत में फैलने लगे। पजाब के मुसलमान फकीर जिस तरह शुरू की सदियों में ददि इन भारत, उसी तरह पन्द्रवीं सदी मे समस्त पञ्जाब के नगर और गाँव मुरु लमान सूफियों और प्रकीरों में भरे हुए थे। पानीपत, सरहिन्द, पाकपट्टच, मुलतान और उच्छ में अनेक प्रसिद्ध सूफी शेखों ने अपनी जिन्दगियाँ गुज़ारी, जिनमें बाबा फरीद, अला उलहक, जलालुद्दीन बुखारी, मखदूम जहानियाँ, शेख इसमाइल बुख़ारी, दाता गाबख्श इत्यादि के नाम अपनी सच्चाई और ईश्वरभक्ति के लिए देश भर में प्रसिद्ध थे । जो जबरदस्त क्रान्ति इन महात्माओं ने देश- वासियों के विचारों में उत्पन्न की, उसी का फल या फूल गुरु नानक का वह सुन्दर प्रयत्न था जो उस महापुरुष ने ठीक कबीर ही के समान और उसी की सरणी पर हिन्दू और मुसलमान धर्मों को मिलाने के लिए किया। नानक गुरु नानक का जन्म सन् १४६६ ईसवी में वैशाख शुक्ला तृतीया को हुआ था । उसने फारसी और संस्कृत दोनों की शिक्षा पाई थी। नानक नाम उन दिनों हिन्दू और मुसलमान दोनों का नाम होता था। कुछ दिनों उसने नवाब दौलत खाँ लोधी के यहाँ नौकरी की। तीस साल की आयु में उसने फ़क़ीरी ली। अपने मुसलमान शिष्य मरदाना के साथ उसने भारत, लङ्का, ईरान, अरब इत्यादि की यात्रा की। लिखा है कि पानीपत के शेख शरफ, मुलतान के पीरों, बाबा फरीद के उत्तराधिकारी
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