पुस्तक प्रवेश मालिक के दर पर लाखों मोहम्मद, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और राम खड़े लाखों तरीके से स्तुति करते रहते है । मोहम्मद साहब की तरह नानक ने भी ईश्वर की इच्छा पर अपने आपको पूरी तरह छोड़ देने का उपदेश दिया। गङ्गास्नान, तीर्थयात्रा, जप, पूजा पाठ इत्यादि को नानक ने अजूल बनाया, अारह पुराण और चारों वेदों को निरर्थक वतलाया, प्रतिमा पूजा का विरोध किया, कबीर के समान राम के अवतार का खण्डन किया, और जाति भेद को मिथ्या और हानिकर बताया। ऊँच नीच के विचार के विरुद्ध नानक ने कहा है-- जोर न कीजे किसी पर, उत्तम मधम न कोय, हिन्दू मुसलमान नं, दोहाँ नसीहन होय । नीचाँ अन्दर नीच जात, नीचे हो श्रत नीच, जित्थे नीच सम्हालिए, उत्थे नज़र तेरो बखशोश ! नीचाँ अन्दर नीच जात, सतगुरु रहे बोलाय । यानी-किसी पर ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिए, कोई ऊँच नीच नहीं है । हिन्दू और मुसलमान दोनों को यही नसीहत है। ईश्वर की बरखशीश उन्हीं को मिलेगी जो नीचों से भी नीच को, और सव से अति नीच को अपनाते हैं। सत्गुरु उन्हें बुलाते हैं, जो नीच से भी नीच जाति के समझे जाते हैं। मुसलमानों को उपदेश देते हुए नानक ने कहा-
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