पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१४८

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पुस्तक प्रवेश

TOS पुस्तक प्रवेश महापुरुषों के सिद्धान्तों की उनके अनुयाइयों द्वारा उनके बाद इसी तरह अवहेलना होती रही है। अन्य हिन्दू सन्त कवीर और नानक के अलावा धन्ना जाट, पीपा, सेना नाई और रैदास चमार इत्यादि महात्माओं के उपदेश भी ठीक इसी डङ्ग के हैं। इन सबके पयों और उपदेशों मे सूफी विचार, सूफ्री शब्द और हिन्दू और इसलाम धर्मों की एकता का जिक्र है । रैदास ने एक स्थान पर राम के अवतार से साफ इनकार किया, उसके कोई कोई पद्य फारसी भाषा मे भी हैं । रैदास ने ईश्वर को “सुलनानों का सुलतान” और अपने को उसका “शिकस्ता बन्दा" वताया है, मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा, जात पाँत इत्यादि का इन सय ने विरोध किया है। दादू कवीर के अन्य अनेक शिष्य देश के अनेक भागों में प्रसिद्ध हैं, जिनमे एक मशहर नाम अकबर के समय में दादू का था । कहते हैं कि सम्वत ५६४२ में दादू की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी मे सम्राट अकबर के साथ हुई जिसमें अकबर ने सवाल किया कि ख़ुदा की जात, अंग, वजूद और रंग क्या है । दाद ने जवाब दिया--- इसक अलह की जाति है, इसक अलह का अंग। इसक अलह औजूद है, इसक अलह का रंग॥ थानी-~-प्रेम (इश्क) अल्लाह की जाति है, प्रेम ही उसका शरीर है, प्रेम ही उसका अस्तित्व है, और प्रेम ही उसका रंग है।