पुस्तक प्रवेश है, वही पर उसका मुला इमाम है, अलख ईश्वर को सामने खड़ा करके वही पर वह सिजदा करता है और सलाम करता है। दादू अपने समस्त शरीर को तसबीह (माला) बना कर उस पर 'करीम' का नाम जपना है, उसका केवल एक रोता है और वह स्वयं अपना 'कलमा' है। इस तरह दादू अल्लाह के सामने एकाग्र होकर आठ पहर खड़ा रहता है और अर्श के ऊपर रहमान' के रहने की जगह पहुंच जाता है। नीचे के पधों में दादू ने धार्मिक सङ्कीर्णता का विरोध, हिन्दू मुसलिम एकता का प्रतिपादन और एक सच्चे सार्वभौम धर्म का उपदेश दिया है। ज़ाहिर है कि सूफ़ियों से उसने भरपूर शिक्षा ग्रहण की थी। वह लिखता है- सब घट एकै प्रातमा, क्या हिन्दू मूसलमान ! अलह राम छूटा भ्रम मोरा। हिन्दू तुरक भेद कछु नाही, देखौं दरसन तोरा ॥ ब्रह्मा विस्नु महेस को कौन पन्थ गुरुदेव । महम्मद किसके दीन में, जबराइल किस राह । इनके मुर्शिद पीर को, कहिए एक अलाह ।। ये सब किसके ह रहे, यह मेरे मन माँहि । अलख इलाही जगत गुरू, दूजा कोई नाँहि ।।
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५०
दिखावट