पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१६९

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भारतीय कला और मुसलमान

भारतीय कला और मुसलमान १३१ चाहते । किन्तु एक दो बातें स्पष्ट हैं । हर देश के लोगों के कला सम्बन्धी आदर्शों पर बहुत बड़ा असर उस देश की भौगोलिक स्थिति का पड़ता है। भारत अभेद्य जङ्गलों, प्रचण्ड ऋतुओं, बड़ी बड़ी नदियों, पहाड़ों और धनी वनस्पतियों का देश है। यही वजह है कि भारतीय शिल्पकला में सदा से विशालता, स्थूलता और विस्तार पर अधिक जोर दिया जाता रहा है। भारत के बनों में बेशुमार तरह तरह की फूल पन्तियाँ इधर से उधर तक गुथी हुई दिखाई देती हैं, नीचे की ओर या ऊपर की ओर कहो भी नज़र डाली जाय, एक गज़ भर ज़मीन सूनी दिखाई नहीं देती। यही वजह है कि प्राचीन भारतीय मन्दिरों और प्रासादों की दीवारों के ऊपर, और कोनों में कही एक फुट जमीन भी नाली दिखाई नहीं देती। पुराने समय के हिन्दू मन्दिरों में नीव के ऊपर नींव, मजिल के ऊपर मञ्जिल, करे के ऊपर कङ्करा और कलश के ऊपर कलश श्राकाश तक पहुँचते हुए दिखाई देते हैं, और इसके साथ साथ कोई कोना या दीवार का हिस्सा नहीं रहता जो मूर्तियों या चित्रों से न भरा हो । शिल्पकला विशारदों की राय है कि संसार के किसी भी दूसरे देश की निर्माणकला विस्तार बाहुल्य और अतिशोभा में हिन्दू निर्माणकला का मुकाबला नही कर सकती। इसके ठीक विपरीत अरब एक विशाल रेगिस्तान है, जिसमें दूर दूर और कहीं की थोड़े से हरे भरे नखलिस्तान दिखाई देते हैं। इसके ऊपर अरब की तेज गरमी, भोजन और वस्त्र के लिए परिमित और इनी गिनी सामग्री और रेत के पहाड़ ! कुदरती तौर पर मुसलमानों की शुरू की निर्माणकला में बड़े बड़े भवन, सादी खाफ दीवारें और ऊँचे मीनार और