पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४०
पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश आया। मुग़ल साम्राज्य के दिनों में ही भारत के अन्दर मुसलमानों की हुकूमत, उनकी सभ्यता और उनका प्रभाव अपनी पराकाष्टा को पहुँचा । किन्तु मुग़लों के शासन और भारत के ऊपर मुग़ल साम्राज्य के उपकारों या अपकारों को वयान करने से पहले हम मुग़लों द्वारा संसार के अन्य देशों की विजय पर भी एक नज़र डालना चाहते हैं। ईसा की तेरवी सदी के शुरू में चङ्गेज़ ख़ाँ ने पूर्वी एशिया से निकल कर उत्तरी चीन, तातार और शेष अधिकांश एशिया को विजय कर लिया था । सन् १२२७ ईसवी में चङ्गेज़ ख़ाँ की मृत्यु हुई। इसके ६८ साल के अन्दर चङ्गेज़ खाँ के उत्तराधिकारियों ने भारत को छोड कर बाकी करीब करीब तमाम एशिया को और यूरोप के एक बहुत बड़े हिस्से को मुगल माम्राज्य में शामिल कर लिया। यूरोप पर उनका हमला सन् १२३८ ईसवी में हुआ। यूरोपियन इतिहास लेखक कहते हैं कि ईसा की आठवीं सदी से जब कि अरबों ने यूरोप पर हमला किया था उस समय से सन् १२३८ तक कोई और इतनी भयंकर आपत्ति यूरोप पर न आई थी। कुछ साल के अन्दर ही तमाम रूस, पोलैण्ड, बलकान, हङ्गेरी यहाँ तक कि उत्तर में बाल्टिक समुद्र और पच्छिम में जरमनी तक, आधे से ज्यादा यूरोप मुग़लों के अधीन हो गया । रूस के ऊपर दो सौ साल तक मुग़लों की हुकुमत रही। शुरू के मुग़ल बौद्ध थे । स्वयं बङ्गेज़ खाँ बौद्धमत का अनुयायी था और साथ ही अपने देश मङ्गोलिया के कुछ प्राचीन धार्मिक विचारों अश्वपूजा इत्यादि को भी मानता था। इन्हीं मुग़लों ने अधिकांश एशिया और यूरोप को विजय किया । बौद्ध मुग़लों ने मुसलिम ईरान और मुसलिम इराक को फतह किया और उसके बाद चङ्गेज़ ख़ाँ के पौत्र हुलाकू