पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१८४

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पुस्तक प्रवेश

१९० पुस्तक प्रवेश औरंगजेब का एलान सन् १६७३ में सम्राट औरंगज़ेब ने अपने साम्राज्य भर में एक एलान प्रकाशित किया, जिसमें ५४ चीज़ों की एक सूी दी गई थी और लिखा था कि इनमें से किसी के ऊपर प्रजा से किसी तरह का महसूल आदि न लिया जाय । इसी एलान में सम्राट ने राज कर्मचारियों और ज़मींदारों को श्राज्ञा दी कि किसी किसान से किसी तरह की भी "भेट या बेगार' न ली जाय । इन ५४ चीज़ों में मछली, तेल, घी, दूध, दही, उपले, तरकारियाँ, घास, इंधन, मिट्टी के बरतन, ऊँट, गाडियाँ, चरागाह, सड़कों की रहदारी का महमूल, नदियों के घाटों का महसूल, रुई, गन्ना, रस, कपड़े की छपाई, इत्यादि भी शामिल थी। इसी एलान में लिखा था कि गंगा या अन्य तीर्थो मे नहाने वालों से या अपने मुदों की अस्थियाँ गंगा में ले जाने वाले हिन्दुओं से किसी तरह का महसूल न लिया जाय। इस तरह की प्राज्ञाएं सम्राट अकबर के समय से लेकर बराबर निकलती रहती थीं । हर नए सम्राट को अपने तख्त पर बैठने के समय या कभी कभी अपने शासन काल में एक से अधिक बार उन्हें इसलिए दोहराते रहना या कभी कभी बदलना पड़ता था ताकि कोई सामन्त या कर्मचारी इस विषय में असावधान न हो जाय ! जदुनाथ सरकार लिखता है-~~ __"उस समय के इतिहासों और पत्रों से ज़ाहिर है कि मुग़ल साम्राज्य के अधिरान की नीति सदा यही होती थी कि रयत पर किसी तरह का अत्याचार न होने पाए। यह बात साबित की जा सकती है कि यह नीति केवल एक शुभ कामना ही न थी, बल्कि यही उस समय की सची हालत थी। शाहजहाँ और