पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२३०

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश आदमियों को डाँटा और कहा----"मुमकिन है. मेरी आस पास की देसी रिश्राया ने इसद के सबब फिरंगियों में कुछ झगड़ा किया हो क्यों न फिरंगी जिस तरह हो सके, अपनी हिफाजत का इन्तजाम करें ? ग्रे बेचारे परदेसी बहुत दूर से आए हैं और बहुत मेहनती हैं । मैं हरगिज़ दखल न दूंगा।" भारत के व्यापारियों को भी उस समय तक कभी किसी दूसरे देश के व्यापारियों से किसी तरह का कडा अनुभव न हुआ था। व्यापारी या श्रामक, अंगरेजों से पहले के किसी भी विदेशी के ज़रिये भारतीय व्यापारियों को किसी तरह की हानि न पहुंची थी। इसके विपरीत विविध देशों के व्यापारियों के मेल जोल से सदा एक दूसरे को लाभ ही पहुँचता रहा था। इसलिए यह भी असम्भव था कि भारतीय व्यापारी, जिनको अन्त में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कारण सबसे अधिक हानि पहुँची, कम्पनी के कुचक्रों का मुकाबला करने या उस्ले देश से बाहर निकालने का मिल कर कोई प्रयास करने की सोचते । इसके विपरीत उस समय के अंगरेज व्यापारी आयरलैण्ड और स्कॉटलैण्ड के व्यापारों का हाल ही में नाश करके इन परस्पर नाशकारी तरीकों का पूरा अनुभव प्राप्त कर चुके थे। यहाँ तक कि स्कॉटलैण्ड तक को, 'बिल ऑफ सिक्यूरिटो' शस करके इंगलिस्तान के इन नाशकर प्रयत्नों से अपने व्यापार की रक्षा करनी पड़ी थी। (३) भारतवासियों को इससे पहले किसी विदेशी के बचनों पर अविश्वास करने का कोई कारण न था । भारत में सन्धिपत्रों और राजकीय एलानों को सदा से पवित्र माना जाता था और यूरोपियनों के आने से पहले एशियाई नरेशों के सन्धिपत्र और एलान अधिकतर बच्चे होते __* Our Empire in Asra, by Torrens, pp 24, 15